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काका हाथरसी की हास्य कविता: ...कहें 'काका', कवि 'बच्चन' ने पीकर दो प्याला
देखूँ कैसे थाम न लेती दामन उसका मधुशाला!।५१।
प्राण प्रिये यदि श्राध करो तुम मेरा तो ऐसे करना
किसी ओर मैं देखूं, मुझको दिखलाई देता साकी
बने ध्यान ही करते-करते जब साकी साकार, सखे,
एक बार ही लगती बाज़ी, जलती दीपों की माला,
हिम्मत है न बढूँ आगे को साहस है न फिरुँ पीछे,
अथक बनू मैं पीनेवाला, खुले प्रणय की मधुशाला।।६३।
बनें रहें ये पीने वाले, बनी रहे यह मधुशाला।।२८।
'किस पथ से जाऊँ?' असमंजस में है वह भोलाभाला,
पीड़ा, संकट, कष्ट नरक के क्या समझेगा मतवाला,
पीकर खेत खड़े लहराते, भारत पावन मधुशाला।।४४।
पथिक, प्यार से पीना इसको फिर न मिलेगी मधुशाला।८०।
दिन को होली, रात दिवाली, click here रोज़ मनाती मधुशाला।।२६।
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